पिता से भरा पूरा घर है
नहीं तो दूभर गुजरबसर है।
वे हैं तो सभी अपने लगते
वरना अजनबी पूरा शहर है।
परिवार में सुख -चैन की बंसी
सब उनकी मिहनत का असर है।
जिसने कभी रुकके देखा ही नहीं
कि सुबह – शाम या तप्त दोपहर है।
अपने हर शौक को सहर्ष छोड़ा
ऐसी कुर्बानी भी मिलती किधर है।
पिता से घर- गृहस्थी सब आबाद नहीं तो दुनिया भी ढाती कहर है।
पिता के बिना जीना आसान नहीं
उनसे जुदाई भी एक जहर है।
अनिल मिश्र प्रहरी।